यह पुस्तक कुन्द कुन्द ज्ञानपीठ की विकास यात्रा को चिन्हित करती है ।
स्वः श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल द्वारा स्वयं के संग्रह से 1988 में प्रदत जैन संस्कृति संरक्षक संघ – सोलापुर तथा भारतीय ज्ञानपीठ - दिल्ली द्वारा प्रकाशित 65 पुस्तको से प्रारम्भ पुस्तकालय की विकास यात्रा आज इस मुकाम पर आ गई है कि जैन विद्या के वरिष्ठ अध्येता भी यह कहने लगे है कि यह मध्यभारत का सर्वोत्कृष्ट जैन शोध पुस्तकालय बन गया है।
इस पुस्तकालय को वर्ष 2007 मे best library award (सर्वश्रेष्ठ पुस्तकालय पुरस्कार ) से म.प्र. यंग लाइबे्ररियन एशोसियन भोपाल द्वारा सम्मानित किया गया है।
श्रोताओं को इस पुस्तक के द्वारा जैन समाज के लिए कुन्द कुन्द ञनपीठा द्वारा की गयी सेवाओं का भी वर्णन मिलेगा ।
यह भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व का मार्ग दर्शन के लिए संयोजित पुस्तकों का भण्डार है ।