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देव अमृत – Dev Amrut: जैनरत्न श्री देवकुमारसिंहजी कासलीवाल (English Edition)

यह पुस्तक जैन रत्न श्री देव कुमारजी कासलीवाल के जैन धर्म तथा समाज सेवा के लिए किये गए योगदान को विभिन्न गुरुजन, मित्रो, परिजनों, समाज-जन द्वारा कहे गए शब्दों का संग्रहण है ।
समय परिवर्तनशील है। काल परिवर्तन के साथ ही व्यक्ति की भोजन रूचियां, वेश-भूषा, रहन-सहन की शैली एवं संपूर्ण जीवनचर्या ही परिवर्तित होती रहती है। ज्यादा पुरानी बात यदि न भी करें तो 100-200 वर्ष पहले ही हम पाते है कि उस समय लोगों में परोपकार की भावना अत्यंत प्रबल थीं जीवन की आवश्यकताएं सीमित थी। अधिकांश व्यक्ति अपनी अपनी सामथ्र्य के अनुरूप गरीबों, दुखियों एवं जरूरतमंदो की मदद करते थे। किन्तु आज स्थितियों बहुत बदल गई है। जगह-जगह खडी होती मल्टी स्टोरी बिल्डिंग एवं विशालकाय बंगलों में रहने वालों के द्वार तक भी कोई जरूरतमंद पहुंच जाए तो उसको खुशकिस्मत ही मान जाएगा। हमारे पडोस में रहने वालों की क्या समस्या है? यह जानना तो बहुत दूर की बात है हमें उसके नाम या कार्यक्षेत्र की ही जानकारी नहीं होती। ऐसे में विरले व्यक्ति ही ऐसे होते हैं जो अपने पारिवारिक एवं वैयक्तिक कार्यो की आपेक्ष सामाजिक कार्यो को वरीयता देते हैं वे दीनदुखियों की सेव, जीवदया, संस्कृति के संरक्षरण, धर्म एवं समाज के प्रति अपने दायित्वों के निर्वाह हेतु सचेष्ट रहते है। श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल एक ऐसे ही व्यक्तित्व का नाम है जिन्हें उनके बचपन के मित्र डी. क.े साहब, उनके कुछ छोटे अनुजवत बंदु भैया साहब तथा उनसे अगली पीढियों के पुत्रवत समाज के लोग काका साहब के आत्मीय संधोधन से पुकारते है।

काका साहब का जीवन समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्ति में दूसरे के विचारों को धैर्यपूर्वक सुनने की क्षमता, अन्य कार्यकर्ताअेा के उचित एंव सामयिक विचारों को अपने विचारों की अपेक्षा आवश्यकतानुसार महत्व देना, असफलताओं से घबराकर कार्य को तिलांजलि न देना अपितु उसके कारणो का विश्लेषण कर उनमें सुधार करने की प्रवृतित होनी चाहिए। समाजसेवी को ईष्र्यालु न होकर मिलनसार, निष्टकपट, गंभीर, परदुखकातर, सहनशील एवं उदार होना चाहिए, तभी कार्यकर्ताओं से उसके आत्मीय संबंध विकसित हो पाते है एवं समाजसेवा के अपनें महान लक्ष्यों को वह प्राप्त कर पाता है। यह सही है कि निर्धन छात्र को पढने में मदद देना, एक भूखे को भोजन एवं कुछ बीमारों को औषधि देने मे हमें किसी के सहयोग की आवश्यकता नही है, किन्तु यदि हमें कोई बडा रचनात्मक कार्य हाथ में लेना है तो अनय कार्यकर्ताओं/समाजसेवियांे का सहयोग अनिवार्य रूप से लेना ही पडता है।
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